भारतीय न्यायालय न्याय के मंदिर नहीं जुए के अड्डे

भारतीय न्यायालय न्याय के मंदिर नहीं जुए के अड्डे हैं जो जितना पैसा खर्च करेगा उसे उतना न्याय मिलेगा। Indian Courtes are casinos, not churches of justice, who will spend the money he'll get the justice according to the money. भूतपूर्व राष्ट्रपति केरल नारायणन ने कहा था। सर्वोच्च और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जिन प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री राज्यपाल राज्य राष्ट्रपति की सहमति से उनको उनकी सेवा चाकरी से खुश होकर वहां पदस्थ किया है। स्वभाविक है वह पूंजीपतियों व सत्ताधीशों के गुलामों की तरह कठपुतली बन नाच कानूनों की सीमाओं से परे जाकर अपने आकाओं की सेवाओं में चरणदासी करने फैसले देंगे ही। फिर कानून मेरी जिंदगी के अनुभव और 3 साल की कानून की डिग्री को 7 साल में मध्य प्रदेश के उस समय के सबसे कुख्यात ग्वालियर के माधव कॉलेज से पास की हुई है। का निचोड़ है, कि "कानून धूर्तों के बनाए शब्दों के मायाजाल हैं। जो अपनों के पोषण और निरीहों के शोषण के काम आते हैं।" शायद मेरा अनुभव इस गुजरात उच्च न्यायालय के, सूचना अधिकार के अधिनियम 2005 पर दिए गए सूचना आयुक्त के फैसले के विरुद्ध उच्च न्यायालय के निर्णय को देखकर सही साबित होता है। जनता जनार्दन सड़कों पर उतरो, अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा करो। अन्यथा इन भेडियों ने चारों तरफ तबाही का तांडव मचा दिया है। कम से कम सच्चे व पावन हृदय से प्रार्थना कीजिए इस राक्षस गिरोह का खंड खंड बिखेर कर प्रभु अंत करें।
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