बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मोटे लाभ श्रमिकों का शोषण, श्रम कानूनों की समाप्ति, सरकार के पास कम से कम नियंत्रण हो

मैंने १९७८ से 1986 तक श्रम कानूनों की पांच बार परीक्षाएं दी हैं। पहली बार बीकॉम द्वितीय वर्ष में, औद्योगिक अधिनियमों में, दूसरी बार एलएलबी में, तीसरी बार डिप्लोमा इन लेबर लॉ में चौथी बार आई सी डब्ल्यू ए में पांचवी बार सीए में, जिसमें 44 नहीं 56 श्रम कानून हुआ करते थे। और वह सभी कानून अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन 1920 के बनाए हुए और उस समय की ब्रिटिश सरकार ने सभी टाटा बिरला व अन्य औपनिवेशिक भारत की 127 ब्रिटिश कंपनियों के उद्योगपतियों की सहमति से लागू हुए थे। जिसे 99 वर्ष के पट्टे के स्वतंत्र भारत की भारत सरकार ने वैसे के वैसे ही 1990 तक लागू कर रखे थे। 1988 के बाद दुनिया के अधिकतर लोकतांत्रिक सरकारों में जालसाज भेड़ियों की पूंजी पतियों व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के चांडालों जिसमें अधिकतर यूरोप मैं अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा के साथ जापान, ताइवान साउथ एंड नॉर्थ कोरिया, चीन की थी, ने दुनिया के व्यवसाय पर कब्जा करने के लिए विश्व व्यापार (जन धन शोषण) संगठन स्थापित कर 1991 में एशिया की बढती जनता और उसकी प्राकृतिक व मानव निर्मित समृद्धि पर कब्जा करने और अपने मार्केट तलाशने भारत के, साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम फिलिपींस, व कुछ अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधियों प्रधानमंत्री आदि को बुलाकर सम्मेलन के माध्यम से उनको घेर कर कनपटी पर पिस्तौल रखकर विश्व व्यापार की आड़ में ( वहां की सरकार में बैठे नेताओं अधिकारियों को खरीदो कानून बनवाओ, लूटो और गुलाम बनाओ) संगठन के समझौते पर हस्ताक्षर करवाए गए। जिसके अंतर्गत उन देशों के प्राकृतिक व मानव निर्मित स्त्रोतों जो सरकार के अधीनस्थ हैं, जैसे विद्युत मंडल, तेल कंपनियां, बड़े बड़े उद्योग, रेलवे, सार्वजनिक परिवहन, खाद्य सामग्री, जल संचयन और वितरण का, सड़कों का पूर्ण निजी करण, श्रमिकों का शोषण श्रम कानूनों की समाप्ति, सरकार के पास कम से कम नियंत्रण, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नियंत्रण के अंतर्गत सरकार के मंत्रालयों में बैठे कम से कम अधिकारी और कर्मचारी हों, ताकि ये बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पूंजीपति चांडाल उन देशों की सरकार के बिना शासकीय हस्तक्षेप के तरीके से हर देश को गुलाम बनाकर लूटते रहे। उस कार्यक्रम का हिस्सा है। जिसमें ये गुजराती सूअर आंख मींचकर, कपड़े खोलकर तात्कालिक सुख भोगने की आशा में देश को बर्बाद करने पर तुले हैं। जनता इसको समझे।
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