घोर भ्रष्ट जालसाज पुलिस अधिकारी, नगर निगम के इंजीनियर, कलेक्टर और निगमायुक्त, करोडोंं की मोटी वसूली यह चाल वर्षों से हर निर्माण, हर योजना हर नई परियोजना मैं खेल
घोर भ्रष्ट जालसाज पुलिस अधिकारी, नगर निगम के इंजीनियर, कलेक्टर और निगमायुक्त, करोडोंं की मोटी वसूली यह चाल वर्षों से हर निर्माण, हर योजना हर नई परियोजना मैं खेल रहे हैं। यहां पर सब लूटने भ्रष्टाचार और जालसाजी करने और अपने लूट जालसाजी से कुंद बुद्धि दिमाग की चालू को पूरा करने या शहर उनकी प्रयोगशाला है। जिसके बहुत छोटे छोटे से उदाहरण देखते हैं बीआरटीएस मैं जेएनयुआर एम के तीन चार किस्तों में लिए गए साढ़े 11 सौ करोड रुपए खर्च करने के बाद में भी आज भी जबकि बनाते समय में बार-बार बोलता रहा, पीएचई के, पी डब्लू डी आइडीए और निगम के इंजीनियरों से अपने समाचार पत्र में छाप कर भी सूचित करता रहा कि इसमें जो पाइप लाइन डाली जा रही है। वह स्टॉर्म वाटर लाइन नहीं है। दूसरी तरफ दोनों तरफ दो 2 मीटर चौड़ी टनल बना दी जाए और हर 500 मीटर पर एक क्रॉस कल्वर्ट बना दी जाए ताकि उसमें से ना केवल वर्षा का जल वरन वॉटर पाइपलाइन गैस पाइपलाइन केबल लाइन गुजारी जा सकने के साथ-साथ उन को आसानी से बदलना, मरम्मत करना भी सरल होगा, पर हरामखोर जालसाजों को इन सब से मतलब नहीं था।उनको मतलब था लूट से, अभी तक कभी यहां से खोदी जाती है। कभी वहां पाइप डाले जाते हैं जबकि अभी भी टोपोशीट के हिसाब से ना तो उसका ग्रेविटी लेवल मिलाया जाता है। ना गहराई में पाइप डालते समय नीचे बराबर इंट व रेत आदि बिछाई जाकर उसके आधार को मजबूत करने की तकनीकी उपयोग की जाती है। बस अपने खास लोगों को बड़े ठेकेदारों की कंपनियां यथा टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड, एलएनटी सोम बिल्डर और पेटी कांट्रेक्टर को जैसे जालसाज कंपनियों को मोटा कमीशन खाने के लिए चारों तरफ सड़के तोड़ना यातायात यहां वहां परिवर्तित करना लोगों को परेशान करना इन हरामखोर जाल साज आईएएस आईपीएस और एस ए एस के वे गैर तकनीकी सूअरों की फौज अपनी सबसे लूटपाट करने के लिए काम देती और करवाती रहती है। इसी श्रृंखला में अभी सैकड़ों करोड़ के काम नाला टैपिंग के जो की जरूरत नहीं थी क्योंकि नाले के बहाव क्षेत्र को कम कर देने से बरसात में आने वाला बाढ़ का पानी जब घरों में घुसेगा जब बिल्डिंगस पलटाये, या धसकायेगा। तब इन हरामखोरों को समझ में आएगा यह सूअर के पिल्ले खा पीकर हाथ पौंछ कर चल देंगे। आखिर संदीप सोनी जैसे अनेकों के बीच 10से 25 25 साल से इंजीनियर व अन्य अधिकारी बाहर से प्रतिनियुक्ति पर आकर अजगर की तरह इंदौर की भ्रष्टाचार की कुर्सी से लिपट कर बैठे हुए हैं काहे के लिए पाले जा रहे हैं। नंदलालपुरा की बिल्डिंग पिछले 12 15 सालों में दो बार बन गई जिसमें अरबों रुपए खर्च करके जनता को लूटा गया। चाहे 56 दुकान हो नाला टाइपिंग हो सड़कों की खुदाई नालियों का डालना जिसमें केवल नालियों में ही पिछले 20 सालों में 2000 करोड रुपए इन हरामखोर जालसाजों ने हजम कर लिए और काम कौड़ी का ढंग का नहीं हुआ। अरबों रुपए की झुग्गी बस्तियों के नाम पर इस तरह शहर के बाहर कैट रोड पर गांधीनगर में बिल्डिंग बनाई गई उनमें भी भारी लूटपाट की गई। जब शहर में हर चौराहे पर हर सड़क पर कैमरे लगे हुए हैं तो चड्डी बनियान गैंग शहर के बाहर की कालोनियों में डाका डालते डालते शहर के मध्य की नेहरू नगर में, सभी गाड़ियों चुरा कर ले जाने लगे तो आखिर क्या आसमान से सीधे वायु मार्ग से टपक कर, डाके डालना, गाड़ी उठा कर ले जाना वायु मार्ग से आते जाते हैं क्या यह हरामखोर पुलिस वाले यहां वहां गुलछर्रे उड़ाते हुए दारू पीकर मस्ती करते रहते हैं क्या करते हैं वह कैमरे आपके, जिस पर आपने सौ करोड से ज्यादा खर्च कर दिए। पिछले 15 सालों में, शहर को ड्रग माफियाओं और वेश्याओं का अड्डा बना दिया। तब टेलीफोन टेपिंग चौराहों के रास्तों के सड़कों के कैमरे वह भी दारू पीके मस्ती में लगे रहते हैं। क्या जनता का पैसा हरामखोर चांडालों अपने बाप की जागीर समझ कर हजम करते रहते हो। काम धाम कुछ नहीं करना। आमजन को बस चालन बनाकर लूटो। कैमरे से लूटो। कोरोना के नाम पर लूटो, सब्जी लूटो, खाओ। लुटाओ। घर ले जाओ। यही थे वह पुलिस और नगर निगम के हरामखोर जो बड़ी-बड़ी संस्थाओं से खाना बनवा कर इकट्ठा करके ले जाते थे। उनके बिल लगाते थे, बांटने में, के नाम पर अपने मोहल्ले और बस्तियों को बांटते ।थे और शहर के लाखों गरीब, छोटे मजदूर उनके परिवार भूखे सो जाते थे। मुंह पर मास्क बांधने के, पोलिथीन के नाम पर लूटो, चालान लूटने के बहाने ढूंढते रहो। बस नेताओं को टुकड़े डालते रहो उनसे उद्घाटन करवाते रहो उन की आड़ में अजगर की तरह 15-15, 20 -20, 30-30 साल तक एक ही शहर में कुर्सी से चिपके रहकर बर्बाद करते रहो। जागरूक नागरिक और युवा पीढ़ी इन सच्चाईयों को समझकर सड़कों पर उतर कर सरकार से पूछे। हर योजना के ऊपर खर्च करने तकनीकी और प्रशासकीय स्वीकृति लेने के बाद जनता से उस योजना की उपयोगिता के बारे में जाने समझे बिना क्यों हर योजनाओं पर आंख मीच के धन को अपने बाप की जागीर समझ कर खर्च किए जाते हैं।
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