140 करोड़ लोगों के देश का बजट जो है, 73 साल की परंपरा को तोड़कर छापा नहीं
अजमेरा उवाच जाहिलों, पाखंडी नौटंकी वाजो स्टेशन के जेब कतरों, आपराधिक मानसिकता के वसूली बाजू तड़ीपार अपराधियों से लूट के नए-नए तरीकों की उम्मीद तो की ही जा सकती है, ना। फिर जाहिलों को लिखने पढ़ने समझने में बहुत तकलीफ होती है। इसलिए 140 करोड़ लोगों के देश का बजट जो है, 73 साल की परंपरा को तोड़कर छापा नहीं जाएगा। क्योंकि छपे हुए कागज लिखित दस्तावेज बन जाते हैं और ये ना केवल चुल्लू भर विपक्षी बहुत हल्ला मचाते हैं, वरन् समाचार पत्र, पत्रिकाएं टीवी चैनल्स प्रसार माध्यम सभी बाद में उस दस्तावेज को लेकर सरकार की धज्जियां बिखेरते रहे हैं। इसलिए चांडाल पाखंडी बजट की छपाई नहीं करेंगे और कंप्यूटर पर तो कुछ भी कर लो सब आसानी से जरूरत के हिसाब से बदल दिया जाएगा। बजट के छपने से बहुत परेशानी होती थी। यहां तक की अपने ही लोग अपने ही मंत्री, प्रदेश की राज्य सरकारें, उसके हिसाब से अपने हिस्से के पैसे का हिसाब व अपने प्रदेश के लिए उसका हिस्सा मांगती थी। जाहिल गवारों से क्या उम्मीद कर सकते हो आप सब बातें हैं बातों में हो, कागजों पर कुछ भी लिखा हुआ नहीं हो, क्या की जनता को चारों तरफ से हर तरीके से हर कदम पर पेट्रोल डीजल से लेकर कस्टम एक्साइज पर भारी भरकम टैक्स ठोकने से लेकर, आयकर मैं भी मनचाही वसूली करने, जब चाहे जैसा चाहे, जिसको चाहे, वैध अवैध रूप से जनता को कंपनियों को मंत्रालयों को लूटते रहो। व इच्छा अनुसार लुटाते रहो। कुछ मुद्रित में होगा ही नहीं, तो कौन जवाब किस आधार पर मांगेगा? तो फिर कौन जवाब देगा? जब चाहेंगे जैसी चाहेंगे बजट की मंत्रालयों की हिस्से की मनचाही व्याख्या करकर, चाहेंगे तो देंगे नहीं चाहेंगे तो बिल्कुल नहीं देंगे। क्योंकि कुछ लिखित में तो है ही नहीं ना। कंप्यूटर के फिगर तो जैसे ईवीएम की जालसाजी से चुनाव जीते थे। वैसे ही न लूट मालूम पड़ेगी। ना राज्यों को, मंत्रालयों को मालूम पड़ेगा ना हिस्सा दिखेगा, तो ना हिस्सा बांटना पड़ेगा। प्रधानमंत्री अनपढ़, आपराधिक मानसिकता का जाहिल है तो स्वाभाविक सी बात है। देश भी मूर्खों अंध भक्तों और जाहिलों का ही है। तभी तो उसे एकतरफा जिता दिया भाई। समझो अंध भक्तों, प्रस्तुति लेखक एवं निवेदक प्रवीण अजमेरा समय माया समाचार पत्र इंदौर
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