सूचना आयोग में चुन चुन कर घोर भ्रष्ट अधिकारियों और चहेतों को बैठा, कानून का पालन कीजिए कानून का मजाक मत उड़ाओ। सूचना आयुक्तों

देश में 55 साल बाद एक छोटा सा कानून संविधान की पारदर्शिता की और जन धन की मनमानी तरीके से लूट किए जाने के विपरीत बड़ी मुश्किल से जनहित में लागू किया गया जिसकी केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर सरपंचों और पंचायतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक ने हीं सबसे ज्यादा धज्जियां बिखेरी। जितना इस कानून का बलात्कार हुआ। सर्वोच्च न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय तक ने हीं शायद दुनिया में सबसे ज्यादा फैसले इस कानून को कमजोर और भ्रष्ट जालसाज अधिकारियों को बचाने के लिए भारत में दिए। और उन निर्णयों के आधार पर 90% केंद्र सरकार के कार्यालय और 50% राज्य सरकारों की कार्यालयों मैं बैठे अधिकारी जानकारी ना देने के 5-5 पेज के बचने के लिए संदर्भो में जवाब दे देते हैं पर ५-१० पेज की जानकारी नहीं देते हरामखोर. आज तक किसी भी देश के उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 4 को पूरा करने के लिए किसी भी मंत्रालय अधिकारी को आदेशित नहीं किया पर फैसले सैकड़ों उस कानून की पारदर्शिता की इच्छा को रौन्दने के लिए अवश्य दिए। वैसे भी इस देश के उच्च व सर्वोच्च न्यायालय, प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर नीचे तक सभी मंत्रालयों मैं भ्रष्टाचार को पालने पोसने और बढ़ावा देने में पिछले 50 साल से सक्रिय भूमिका अदा कर रहे हैं इसी कारण 25 जनवरी 2001 को तत्कालीन राष्ट्रपति स्वर्गीय के आर नारायणन ने कहा था न्यायालय न्याय के मंदिर नहीं जुए के अड्डे हैं। पर न्यायालय जिला एवं सत्र न्यायालय से लेकर उच्च व सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 4 का कितना पालन किया? पहले स्वयं गिरेबान में झांक ले। आयोग में बैठे सारे देश के सूचना आयुक्त व केंद्रीय सूचना आयुक्त कानून को अपने बाप की जागीर ना समझें और फिर 15 साल गुजर जाने के बाद किसी भी विभाग ने धारा 4 का पालन क्यों नहीं किया दूसरी तरफ यह सारे जितने की सूचना आयोग में बैठने वाले अधिकांश आयुक्त तो सरकार के मुख्यमंत्री मुख्य सचिव की कृपा पात्र ही होते हैं और सरकार के हिसाब से ही चलते हैं। आखिर अगर अपनी औकात थी तो सूचना आयोग के सारे के सारे आयुक्तों ने 15 साल में हर विभाग में सारी जानकारी धारा 4 की पूरी क्यों नहीं करवा पाए। दूसरी तरफ वहां बैठे सारे मक्कार जिन्हें सरकार ने खुश करने के लिए और सारी सरकारी सुविधाएं देने के लिए वहां बैठाया है। अपनी मनमर्जी से बिना किसी बहुत अच्छी योग्यताओं के साथ तो बैठाया।आखिर क्यों और फिर अपनी औकात में रहना सीखो कानून के अंतर्गत आयोग ऐसा कोई भी निर्धारण नहीं कर सकता आप कानून के अंतर्गत बैठा ले गए हैं कानून का पालन कीजिए कानून का मजाक मत उड़ाओ। ये सूचना आयुक्तों। आवेदकों के विरूद्ध कार्रवाई करना और इस प्रकार के आदेश देना क्या सरकार और उसके अधिकारियों को बचाने भ्रष्टाचार छुपाने, कृत्य नहीं है जो कानून की पारदर्शिता की आत्मा के विपरीत है। सरकारी धन अपने बाप की जागीर नहीं जो कोई भी अधिकारी अपनी मनमर्जी से खर्च करेगा और उसका हिसाब भी नहीं देगा इतना भ्रष्टाचार क्यों हो रहे हैं जब सूचना का अधिकार लगने की घोषणा हुई थी तब अच्छे-अच्छे पंचायतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक सबकी जान आफत में आ गई थी सब भाई भी थे कि हमारे सारे भ्रष्टाचार खुल जाएंगे उल्टे ही भ्रष्टाचार खुलने की अपेक्षा इस आयोग ने उस कानून को ही मजाक बना दिया सारे कानून की स्पष्ट व्याख्या होने के उपरांत भी आखिर 15 साल गुजर जाने के बाद धारा 4 तो पूरी नहीं की गई इसके विपरीत जब की धारा 5 (2) में स्पष्ट व्याख्या है, कि कि कार्यालय प्रमुख लोक सूचना अधिकारी होगा और उससे छोटा अधिकारी जो कम से कम उप संभागीय या उप जिला स्तर का होगा व सहायक लोक सूचना अधिकारी होगा। इसके विपरीत वहां संभागी कार्यपालन यंत्री को अपने ही विभाग का अपीलीय अधिकारी बना दिया और सहायक यंत्री को लोक सूचना अधिकारी ऐसे अनेकों विभाग हैं।उस पर शिकायत करने के बाद हरामखोरों ने क्या किया? आज तक। कितनी हजार कितने सालों से द्वितीय अपीलें आयोग के पास लंबित हैं। शीघ्र निपटाने के लिए क्या किया? सामान्य प्रशासन विभाग को लिखने के उपरांत भी पूरे विद्युत कंपनियों में, सभी कार्य विभाग के मुख्य अभियंता कार्यालयों में जिला पंचायतों में जहां विभाग प्रमुख लोक सूचना अधिकारी होना चाहिए वहां वह स्वयं अपीलीय अधिकारी बन कर बैठ गया और जानकारी देने की तो दूर ऐसे सारे हरामखोर जालसाज अपने आप को बचाने के लिए धारा 8 (1) का सहारा लेकर अधिकांश आवेदनों का जवाब भी नहीं देते हैं अपील लगाने पर उसको भी खारिज कर दिया जाता है और आयोग के पास जाने के बाद सालों तक सुनवाई तो दूर कार्रवाई तक नहीं होती। तो पहले अपने गिरेबान में झांक लो। जहां मोटा पैसा लेकर ने शुरुआत से अभी तक याद करने का खेल चला रहा है। जितने अधिकारियों पर दंड किया गया वह सब वही थे। जिन्होने आयोग को गिना और सुना नहीं। क्योंकि वहां तो सत्ताधारी अपने प्रिय चुन-चुन के उन घोर भ्रष्ट अधिकारियों और चहेतों को बैठालता है। जो सरकार के हिसाब से कदमताल करते रहें और सूचना के अधिकार में कोई खास जानकारी किसी भी आवेदक को हाथ ना आने दें। आखिर सिंहस्थ की जानकारियों में, वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग की पंचायत विभाग की महिला बाल विकास की ग्रह एवं ग्राम निवेश की राजस्व कार्यालयों की खनिज की परिवहन आदि की जानकारियां कितने लोगों को मिल पांई। क्या कर पाए आज तक यह आयोग। प्रस्तुति एवं लेखक प्रवीण अजमेरा समय माया समाचार पत्र इंदौर
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