क‍ि‍सान दुन‍िया का सबसे बड़ा जुआड़ी, जो पर‍िवार के साथ तन,मन और उधार के धन से 4महीने प्रकृत‍ि की इच्छा के साथ कृष‍ि‍ भूम‍ि पर हर दांंव से जी तोड़ मेहनत कर फसल पैैैैदा करता हैैै ज‍िसके दम पर 140 करोड़ पलतेे हैैं

क‍ि‍सान दुन‍िया का सबसे बड़ा जुआड़ी, जो पर‍िवार के साथ तन,मन और उधार के धन से 4महीने प्रकृत‍ि की इच्छा के साथ कृष‍ि‍ भूम‍ि पर हर दांंव से जी तोड़ मेहनत कर फसल पैैैैदा करता हैैै ज‍िसके दम पर 140 करोड़ पलतेे हैैं किसान भाइयों आपकी तकलीफों का निसंदेह आम शहरीय लोगों को अंदाजा नहीं है। क्या आपको एक फसल बोने से पहले खेत को तैयार करना पड़ता है चाहे वह गर्मियों में मई-जून की आग उगलती धरती हो, बरसात हो, आपको खेत जोतने खेतों में जाना ही पड़ता है। तब कहीं जाकर खेती की जमीन तैयार होती है। इसके बाद बीज खरीदने दस वीस किमी चलकर गांव की सोसाइटी पास बीज विक्रेताओं पर लाइन में लगकर बीज खरीदना पड़ता है और उस बीज खरीदने के लिए आपको कहीं से सोसाइटी से बैंकों से या क्षेत्रीय बनिया से महंगी दरों पर धन इकट्ठा करना पड़ता है तब आप बीज खाद कीटनाशक खरीद पाते हैं। फिर यदि बरसात अच्छी हुई तो ठीक है ज्यादा हुई तो भरी बरसात में खेतों में ज्यादा पानी निकालना पड़ता है वंधे बांधने पड़ते हैं मिट्टी पलटानी पड़ती है। [18:55, 12/13/2020] Sri: इसके लिए रात और दिन कुछ नहीं होता। इसके साथ ही यदि बरसात कम हुई तो बिजली अगर रात में 2:00 बजे आती है तो आप खेतों में जाकर सिंचाई के लिए मोटर चालू करने जाते हैं भले ही रात में मच्छर कीड़े मकोड़े सांप बिच्छू कीड़े कांटे, जंगली सूअर से लेकर जंगली जानवरों इस में तेंदुआ तक शामिल होता है इन सब की परवाह किए बिना आप खेत पर जाकर सिंचाई करते हैं। ताकि आप की फसल सूख व खराब न जाए। बेशक आप देश की सबसे बड़ी जुआरी होते हैं जो 4 महीने तक अपना अपने बीवी बच्चों के साथ खेतों में जी व हाड़ तोड़ मेहनत करते हैं। पौधों के थोड़े बड़े होने पर उसमें कीटनाशक खाद आदि का छिड़काव करते हैं। और बड़ी होने पर जब फसलों में फूल आने लगते हैं तो आप खिल उठते हैं। और बड़ी होने पर जो सफल आने लगते हैं तो आप के चेहरे खुशी से झूम उठते हैं।सब कुछ ठीक रहा तो फसल पकती है। अन्यथा भारी बरसात हो जाने पर खेतों में फसलें सड़ जाती हैं। इस बीच 4 महीने आप सतत खेतों पर पहरेदारी करते हैं। ताकि नीलगाय, सूअर, गाय भैंस भेड़ें, बकरी न खा जाये । आपकी यह पीड़ा मैंने परेशानी और हार तोड़ मेहनत के बारे में आम शहरी को कुछ भी नहीं पता होता। फसल पक जाने पर कटाई कटाई करने के बाद जब तक आप की फसल घर तक नहीं पहुंच जाती। तब तक हर पल आपकी वह परिवार की बीवी बच्चों की नजरें दिल दिमाग सब खेत में लगे रहते हैं। फसल आने के बाद आप उसको भरकर बेचने के लिए मंडियों में ले जाते हैं। वहां पर भी आने को परेशानियों का सामना करना पड़ता है तब फसल ले जाकर खुले में बोली लगाने के लिए मंडियों के मैदान में पटकना पड़ता है। जिसका अपनी एक दाना बड़ी मेहनत से 4 महीने तक ताकते सींचते और भगवान से प्रार्थना करके बड़ी मुश्किल से तैयार किया होता है। बोली लगने पर सही रेट मिले तो ठीक और कम रेट मिले तो भी आपको मन मार कर फसल बेचनी पड़ती है। फसल का दाम आते ही जो आजकल सीधे बैंकों में पहुंचता है आप को घाटे नुकसान, व घर की व पत्नी बच्चों की आवश्यकताओं भोजन पानी बच्चों की किताबें फीस कपड़े के लिये आवश्यकता से दूर बैंक बनिया सबसे पहले अपने दिए गए कर्ज को जमा करता है जो बसता है तब वह है आपके घर की जरूरतों को पूरा करने में काम आता है। तब कहीं जाकर उस फसल आड़तियों से होती हुई दुकानों पर पहुंचकर आम आदमी खरीदने पहुंचता है। जिसमें खरीफ रवी की फसलें सब्जियां अनाज दलहन तिलहन सब शामिल होते हैं। इतनी मेहनत मशक्कत के बाद में भी आपको आपकी मेहनत का दाम नहीं मिलता। और दाम तो दूर लिया गया कई बार कर्ज व खर्च भी पूरा नहीं होता/ निकलता। यह पीड़ा बाद में आगे बढ़ कर आत्महत्या तक पहुंच जाती है। हजारों किसान कर्ज में दबकर हर साल आत्महत्या कर लेते हैं पूरे देश में। तो मेरा विनम्र निवेदन है कि आप आत्महत्या ना करें आप हमारे अन्य जाता है हमारा देश की जनता का पेट भरते हैं। बेशक आपके साथ हर कदम कदम पर छल कपट व्यापारी से लेकर जनता तक करते हैं। क्योंकि आप को आप की फसल का उचित लागत मूल्य भी नहीं मिलता जिसमें 4 लोगों की यदि 12 घंटे की ₹10000 महीने के हिसाब से 4 महीने का ₹1,60,000 तो केवल वेतन ही हो जाता है। जो आप की फसल बिकने पर आपकी मेहनत का तो दूर कई बार फसल की लागत का मूल्य भी नहीं निकलता जिसमें लिये गये ऋण का ब्याज और कृषि भूमि की लगान तक सब शामिल होते हैं। आपको नहीं मिल पाता। मंडियों में तो क्योंकि सरकारी नियंत्रण होता है इसलिए मंडी के अधिकारी कर्मचारी इंस्पेक्टर निर्धारित मूल्य की दरों पर माल दबाने का प्रयास करते हैं। परंतु अब मंडिया खत्म हो जाएंगी तो स्वभाविक है कोई सरकारी नियंत्रण नहीं कोई देखरेख नहीं जिसको जिस भाव में मन में आएगा वह खरीदेगा। स्वाभाविक सी बात है जब फसलें बाजार में आएंगी उसके 5- 10 दिन पहले ही, बाजार में पुराना स्टॉक बड़े भेड़िए फेंक कर बाजार की कीमतें गिरा कर लागत मूल्य से भी आधा कर देंगे फिर उस भाव में जहां कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं होगा खरीदी करने के बाद जब बाजार से मालपुरा खरीद लिया जाएगा तो वही माली अदानी अंबानी टाटा बिरला वॉलमार्ट तीन से चार गुनी कीमत पर बैचेगे। जैसा कि मंडियों से पहले और मंडियों के बाद होगा और अभी ज्यादा नहीं अप्रैल-मई जून-जुलाई में भी अदानी नहीं देवास और आसपास की मंडियों से रु 1500 -1600/- प्रति क्विंटल में अच्छे से अच्छा गेहूं खरीदा। जून में जब उसने खरीदी जब उसने से हाथ ऊंचे कर दिये। तब मंडियों ने काम करना शुरू किया अन्यथा करोना की आड़ में देश बंदी का पाखंड मार्च में इसलिए शुरू किया गया। ताकि नई फैसलों की सबसे ज्यादा खरीदी अडानी अंबानी टाटा बिरला आईटीसी युनिलीवर जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने उस बड़े पाखंड की आड़ में लाखों टन अनाज खरीद लिया। आखिर राज्यों के व देश के खाद्य निगम वेयरहाउसिंग कारपोरेशन ने खरीदी क्यों नहीं की क्योंकि सरकार ने देश बंदी की घोषणा कर दी थी। जो न्यूनतम समर्थन मूल्य रुपए 1975 था देश बंदी की आड़ में गांव की और शहरों की मंडियों से उन्हें एक दाना भी नहीं खरीदा। उल्टे ही भारतीय खाद्य निगम के देश के अधिकांश भंडार गृहों को अदानी के हवाले कर दिया गये। जहां अब भारतीय खाद्य निगम की अपेक्षा अडानी खाद्य निगम के बोर्ड लगे नजर आते हैं। अब उसी गेहूं का आटा 4000 और ₹4500 क्विंटल बिक रहा है। यह तात्कालिक सच है। परंतु दीर्घावधि में यह अडानी अंबानी टाटा बिरला पारले, आईटीसी युनिलीवर ₹15 किलो का गेहूं 60 और ₹80किलो बेचेंगे और सही मायने में तो वे अभी बिस्कुट बनाकर ₹5 का 20 ग्राम का पैकेट बेच रहे हैं जो ढाई ₹100 किलो आमजन को विज्ञापन की कीमत के साथ पड़ रहा है। जबकि ₹10 किलो का आलू जो उन्होंने ₹5या रु8खरीदा होगा। रुपए 20 में 10 ग्राम आलू के चिप्स जो पेप्सीको व अन्य कंपनियां बैच रही है। ₹2000/- प्रति किलो बिक रहा है। अब बड़े प्यार से ही हराम की कमाई से कमाए हुए धन से 50% शहरी जनता स्वयं व अपने बच्चों को खिलाकर अपने को बड़ा गौरान्वित भी महसूस करती है। यह सच है कि किसानों का और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का। इसे आम आदमी को समझना होगा। और किसानों के आंदोलन के साथ खड़े होकर इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को खाद्य बाजार के व्यवसाय से बाहर करना होगा। अदानी अंबानी की सैकड़ों बड़ी-बड़ी कंपनियां जिसमें अदानी पावर रिलायंस पावर टाटा पावर जो एक पैसे की बिजली सप्लाई नहीं करती हैं फिर भी हजारों करोड़ रुपए अनुबंध के तहत मुफ्त का खा जाती हैं जिन में फर्जी तरीके से अकेले मध्य प्रदेश सरकार हजारों करोड़ का भुगतान कर रही है। इतना नोचने खसोटने के बाद में इन राक्षसों का पेट नहीं भरता। आखिरी ये सूअर के पिल्ले ना तोमर फल खाकर आए हैं और ना ही सैकड़ों साल जिएंगे। जनता की हाई खाकर तो कभी भी अचानक मर सकते हैं फिर भी अगर उससे बच गए तो 10-20साल से ज्यादा नहीं। फिर भी गिद्धों को देश की सारी संपत्तियों पर अपनी नाम पट्टिका लगवा कर करोड़ों को भूखा मारना और बेरोजगार करने करने में ही जीवन के सुख के प्राप्ति होती है जिसमें ये गुजराती भेड़िए मोदी अमित शाह और अब साथ में पूरी भेढ़िया झुंड पार्टी शामिल होकर देश की जनता और देश की संपत्तियों और देश को दोनों हाथ से राक्षसों की तरह नोचने और खाने में लग चुकी है। यह सच भी जनता को समझना होगा और किसानों के साथ खड़े होकर आंदोलन को मजबूत कर इन सारी कंपनियों को और सारे कानूनों को खत्म करवाने के लिए सभी समय को मजदूरों कर्मचारियों अधिकारियों किसानों व्यापारियों को खड़े होकर लड़ाई लड़नी पड़ेगी अपने अस्तित्व को बचाने की। नहीं तो अभी झलकियां चल रही है वास्तविकता सामने आने पर करोड़ों लोग भूख से आत्महत्या करने के लिए बेहोश हो जाएंगे और अभी भी 9 महीने के महामारी के पाखंड की आर्मी गरीबों ने धना भाव में और बेरोजगारी से आत्महत्या कर ली वह सरकार नहीं बताती और ना ही ये मीडिया के बिके हुए भड़वे सच बताते हैं। सभी बीमारियों से मरने वालों को करो ना मैं दिखा कर मृत्यु का आंकड़ा बड़ा चौड़ा करने का काम कर रहे हैं किसानों के आंदोलन के बारे में 90% चैनल सच से दूर सरकारी हुआ हुआ चिल्लाने में लगी हुई है। जनता स्कोर बारीकी से समझें। निवेदक लेखक एवं प्रस्तुति प्रवीण अजमेरा समय माया समाचार पत्र इंदौर www.samaymaya.com
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