क्या उपयोग है? FSSAI विश्लेषक प्रयोगशाला वाहन का चमका-धमका कर वसूली करने के लिए

मध्य प्रदेश के खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम के अंतर्गत खाद्य सुरक्षा विभाग को पूरे प्रदेश में 9 संभागों में नौ चल‍ित प्रयोगशाला वाहन बांटे गए हैं आश्चर्य की बात है कि ना तो उसमें ड्राइवर है, विश्लेषक और ना रसायनज्ञ ना ही उसमें उसके खाद्य सुरक्षा के संबंध में जो नमूने लिए जाते हैं। उनके विश्लेषण के लिए पर्याप्त अन्य रसायनों की जो उसमें उपयोग में आते हैं, उसकी व्यवस्था की गई है। बेशक प्रयोगशाला वाहन 70लाख रुपए की बनाया जा कर खरीदी गई है। जिसके अंदर अनेकों मशीनें लगी हुई है। उनको चलाने के लिए और प्रशिक्षित व्यक्ति नहीं है। उसमें ड्राइवर नहीं है सरकारी, तो निष्कर्ष यह है कि जितने भी अभिहित अधिकारी जो है उन्हें अपना ड्राइवर रखना है वह वेन चलाएगा जो वेन चलाएगा उसका बीमा होना चाहिए उसका लाइसेंस वाणिज्यिक लाइसेंस में जारी किया हुआ होना चाहिए। इसके साथ ही उसके अंदर आवश्यक जो रसायन, विश्लेषण में काम आते हैं।उनको भी अभिहित अधिकारी को ही खरीद कर उसमें रखना है। अब आप समझिए कि जब किसी को प्रशिक्षण ही नहीं दिया गया। अधिकारी को हर जिले के और हर जिले में वह महीने में 2 से 3 दिन उस क्षेत्र के जितने भी खाद्य उत्पादक और विक्रेता है उनके नमूने लेकर उसमें विश्लेषण तत्काल करके देना है। परंतु अभिहित अधिकारी को कोई प्रशिक्षण नहीं कोई विश्लेषक नहीं, कोई रसायनज्ञ भी नहीं, तो आखिर प्रयोगशालाओं में जो जन धन से खरीदी गई थी क्या उपयोग है? और मैंने आपको देखा होगा पिछले वीडियो में इंदौर में खड़ी एफएसएसएआई का जो विश्लेषक वाहन जो 15 द‍िन से ज्यादा समय से खड़ा हुआ है। कु्छ महीने धूल खाने के बाद कबाड़ हो जाएगा क्योंकि उसे पर्याप्त सामग्री नहीं चलाने के लिए सरकारी कोई ड्राइवर नहीं वह पर्याप्त स्टाफ नहीं कौन सैंपल लेगा सैंपल ले भी लिए तो विश्लेषण कौन करेगा वह बिना विश्लेषण की उस प्रयोगशाला का उपयोग क्या है? आखिर करोड़ों रुपए बर्बाद करने के बाद केवल नौटंकी चमकाने धमकाने व मोटी वसूली कर कमीशन खाने की थी। जिसके लिए वाहन खरीदे गए और नौटंकी की गई अगर कोई उपयोग नहीं है। पर्याप्त न‍ियम‍ित स्टाफ नहीं है तो सरकार यह नौटंकी करती ही क्यों है। और अगर विश्लेषण कर भी लिए गए उसकी जांच रिपोर्ट तैयार कर भी ली गई अब क्योंकि उस वाहन का राजपत्र में कोई भी प्रकाशन नहीं हुआ है ना ही उसको अधिकृत किया गया है तो उस विश्लेषण रिपोर्ट का कोई औचित्य नहीं है। क्योंकि अगर उसमें नमूने फेल भी हो जाते हैं, तो भी उनके खिलाफ न्यायालय में प्रकरण नहीं लगाया जा सकता और ना ही उसमें कोई भी न्याया संगत कार्रवाई खाद्य मिलावट के खिलाफ व्यापारी और उत्पादक पर की जा सकती है तो आखिर नौटंकी केवल वसूली की ही आती है चमकाओ और वसूली करो यह उद्देश्य रह गया उस वाहन का। और यही हाल इंदौर में बन रही चंदातालावली मैं जो इंदौर की खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत बनाने वाली प्रयोगशाला में जो जमीन आवंटन किया गया था उस आवंटित जमीन के ऊपर कॉलोनाइजर ने कब्जा करके प्लॉट काटना शुरू कर दिया है और सरकार को इसके साथ ही अभिहित अधिकारी को इस बात की कोई चिंता नहीं हो रही है और सूत्रों के अनुसार ऐसा भी मालूम पड़ा है कि उस भूमि पर कब्जा करवाने के लिए स्थानीय अधिकारियों ने ही सहयोग किया है जो वहां प्रयोगशाला निर्माण के लिए जिम्मेदार हैं उसमें अभी तक भूमि का आबंटन सीमांकन हो जाने के उपरांत भी ना तो वहां पर बाउंड्री वॉल खड़ी की गई है ना ही इसका डिजाइन बना है ना ही नक्शे स्वीकृत हुए टीएनसीपी से और नगर निगम से इसके विपरीत वहां पर एक सुलभ शौचालय जरूर बना दिया गया है। जबकि उसके लिए अभी तक केंद्र व राज्य सरकार से कहीं से भी प्रयोगशाला निर्माण के लिए धन का आवंटन ही नहीं हुआ है जब आवश्यक धन का आवंटन नहीं हुआ तो प्रयोगशाला केंद्र भवन बनने की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती और दूसरी तरफ चल‍ित वेन जो है क्योंकि यह राजपत्र में इसका प्रकाशन नहीं हुआ है इसलिए अधिकृत नहीं है तो इस प्रयोगशाला खाद्य के नमूने भी अधिकृत नहीं हो सकते और ना ही उनके ऊपर कोई न्यायालयीन प्रकरण कायम किया जा सकता है इस प्रयोगशाला का प्रयोग केवल छोटे व्यावारी को चमका-धमका कर वसूली करने के लिए ही किया जा रहा है पूरे मध्यप्रदेश में उसमें पर्याप्त स्टाफ नहीं है जो कोई कार्यक्रमों की जांच कर उसके परिणाम दे सके।
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