देव भाषा देव लिपि संस्कृत का तो दूर हिंदी का भी ढंग से ज्ञान नहीं, सबसे ज्यादा हमारे देश में ही उपेक्षा
देव भाषा देव लिपि संस्कृत का तो दूर हिंदी का भी ढंग से ज्ञान नहीं हम सब देवभूमि में सौभाग्य बस पैदा हुए। पर हम अभिशप्त काल में पैदा हुए कि हमारी देव भाषा देव लिपि संस्कृत का तो दूर हिंदी का भी ढंग से ज्ञान नहीं। अंग्रेजों ने जो सबसे विनाशकारी काम किया ताकि उनकी दास्तां उनके चले जाने के बाद में भी इस देश की मिट्टी में लोगों की जबान में लोगों के रग-रग में बस जाए ।वह हमारी देव भाषा संस्कृत को तो उन्होंने पूरी तरीके से खत्म करने का पूरा प्रयास किया। बेशक गिनती के मुट्ठी भर जैन साधुओं, भट्टारको ने, परंतु ब्राह्मणों कि समाज के एक बड़े हिस्से ने संस्कृत के वेदों, शास्त्रों, उपन‍िषदों के पठन और पाठन को धर्म, ज्योत‍िष के जीवित रखा और परंपराओं को स्थापित रखने में सैकड़ों पीढ़ियां खपा दी। बेशक हर काल हर युग में हर भारत पर चढ़ाई करने वाली आक्रांताओं ने 6-7वीं शताब्दी से लेकर वर्तमान तक उन बुद्धिजीवी ब्राह्मणों की विद्वता के कारण सबसे ज्यादा हत्या की गई और अंग्रेजों ने तो अट्ठारह सौ से लेकर 1840 तक लाखों ब्राह्मणों का गुरुकुल में पढ़ाने वाले शिक्षकों का ना केवल खुले में कत्लेआम किया। बल्कि 1820 से लेकर 40 तक देश में फैले हुए 10 लाख से ज्यादा गांव-गांव में बसे गुरुकुलों को आग के हवाले कर ब्राह्मणों को भी आग में झोंक दिया उसको सबसे ज्यादा कुट‍िल नीच पाखंडी सिद्ध करने की कोशिश तो 12 वीं शताब्दी से ही मुगलों के आगमन व आक्रमण से ही शुरू हो गई थी। उन मुस्लि म लुटेरे को भी सबसे ज्यादा मानस‍िक डर इन्हीं ज्ञानी ध्यानी ब्राह्मणों से लगता था। अंग्रेजों ने संस्कृत को तो बर्बाद किया ही, उन्होंने हमारी हिंदी भी हमसे छीन ली और सदैव के लिए हमारे देश में मानसिक शारीरिक गुलामी का बीजारोपण कर गए 70 साल की आजादी के बाद में भी हमारे विद्यालयों में संस्कृत, लिपि भाषा व विद्या अध्ययन का अंश मात्र भी नहीं पढाया व स‍िखाया जाता है। हमारे संविधान में जो सबसे कुटिल चाल चली गई। हमारे मंदिरों में और हिंदू धर्म में जैन धर्म में अपने शास्त्रों की उपनिषदों वेदों के साथ हमारे अपने पौराणिक ज्ञान की शिक्षा को जोकि हर मानव की ऐतिहासिक उपलब्धि जो भविष्य का निर्माण करती है। को प्रतिबंधित कर दिया गया। 6 साल के मोदी के शासनकाल में भी इसकी ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया जबकि हमारी संस्कृत में, सामाजिक, आर्थिक, राजनीति, रसायन, भौतिक, प्रकाश, ज्योतिष, खगोल शास्त्र, तारामंडल, ग्रहों की गति प्रभाव से लेकर, वास्तु, भवन, सड़क, सेतु निर्माण, मंद‍िर, सुरों, संगीत, मूर्तिव, सौंदर्य प्रसाधन, आभूषण, रत्नों, धातु, म‍िश्र धातु वस्त्र, सड़क, सेतु निर्माण, चित्रकारी, काव्य, लेखन, साहित्य, युद्ध, मौसम विज्ञान, कृषि, औषधि, भैषेज, शल्य क्रिमया, चिकित्सा, उद्यानिकी, वन, पशु पक्षी विज्ञान, से लेकर जीवन के हर क्षेत्र की वृहत व्याख्या, विषयों का अध्ययन, अध्यात्म, धर्म, मानव विज्ञान, तंत्र मंत्र यंत्र आदि अनेकों विषयों के बारे में वृहद ज्ञान का भंडार विश्व में सर्वाधिक प्राचीन और समृद्ध था। ज‍िसे मुस्लियम, डच, पुर्तगीच के बाद अंग्रेजों ने भारत से चुरा ले जा कर अध्ययन के साथ पूरे व‍िश्व में फैलाया पर षड़न्त्रकार‍ियो ने हर संभव कोश‍िश कर भारत में नष्ट क‍िया। वह हमसे दूर है, यह हमारा दुर्भाग्य है। इस हिंदी दिवस पर हम सब को प्रण करना चाहिए कि उस पुराने हमारे पौराणिक, वृहद, समृद्ध ज्ञान को हमें उसका तिल मात्र अंश भी नहीं मिल पाया है। परंतु आने वाली पीढ़ियों को उस वृहद भंडार में से कुछ तो मिल सके और कम से कम वे तो पृथ्वी पर अपने, अपने परिवार की, अपने समाज, नगर, प्रदेश और राष्ट्र की श्रेष्ठता को स्थापित कर सके। भाजपा अगर अपने आप को हिंदूओं के संरक्षक होने, संस्कृति और धर्म को बचाने का दावा करती है तो सबसे पहले उसको संविधान के उस प्रतिबंधित अनुच्छेद को हटाना चाहिए। ताकि भारत संपुर्ण विश्व में अपनी पौराणिक, ज्ञान परंपरा का प्रकाश फैला कर श्रेष्ठता स्थापित कर सकें।
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