महामारी की सच्चाई बताने और प्रसार‍ित करने पर सर्वोच्च न्यायालय का प्रत‍िबंध, लोकतंत्र की हत्या

भूतपूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन 25 जनवरी 2001 को राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम संबोधन में स्पष्ट कहा था। की न्यायालय न्याय के मंदिर नहीं जुए के अड्डे हैं। जो जितना पैसा खर्च करेगा उसे उतना न्याय मिलेगा। अर्थात उच्च व सर्वोच्च न्यायालय जो हैं। पूर्णता सत्ताधीशों और पूंजी पतियों के गुलाम हैं। जैसा निर्देश और धन मिलेगा वैसा ही निर्णय होगा। न्याय की गरिमा तो हिंदूओं से जुड़े हुए अनेकों मुद्दों में सामने आ चुकी है। खुलकर हिंदुओं के धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय खुलकर हस्तक्षेप कर निर्देशित करते हैं। नीति निर्धारण करते हैं। परंपराओं, कार्यक्रमों, संस्कारों पर अपने निर्णय देकर धज्जियां बिखेरते हैं। परंतु मुस्लिमों के मामले में न्यायालय हमेशा उनके धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं करते ऐसे पिछले 70 सालों में हजारों उदाहरण मिलेंगे जहां उच्च व सर्वोच्च न्यायालय ने जनतांत्रिक मूल्यों को त्याग सत्ताधीशों और पूंजी पतियों की हितों का ख्याल रखा। अभी जब देश में 125 दिन से ज्यादा समय से वह विदेशी पाखंडी संस्था जो अपने आप को विश्व स्वास्थ्य संगठन कहती है। और दुनिया की जानी-मानी बड़ी-बड़ी कंपनियों माइक्रोसॉफ्ट गूगल वॉलमार्ट, स्नैपडील, अमेजॉन फ्लिप्कार्ट, भारत की जिओ मार्ट, रिलायंस रिटेल के इशारे पर नाच कर देश की ओर दुनिया की जनता को महामारी के पाखंड में उलझा कर बर्बाद करने पर तुली है। फिर स्वयं भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है सच बोलने पर कोई दंड कोई अपराध नहीं बनता। हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का लोकतंत्र में पूरा अधिकार है। तो फिर कोविड-19 से संबंधित सच्चाई को व्यक्त करने में अपराध कैसा? क्यों? जितना जनता डरेगी उतना यह धूर्त चांडाल सत्ताधीश, प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस, निगम कर्मी, एलोपैथी के डाक्टर आपको डराएंगे।अपनी जालसाजी, लूट और कुकर्मों को छुपाने के लिए। खुल कर सच लिखें और बोले। हमारा राष्ट्र लोकतांत्रिक गणराज्य है। सच्चाई को व्यक्त करने का सबको अधिकार है। देश में महामारी का पाखंड चलते हुए तो 25 दिन गुजर गए पर किसी भी भारत के उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की की औकात हुई कि वह सरकार से या स्वयं नोटिस देकर उस विश्व स्वास्थ संगठन से पूछे कि अगर तू अपने आप को विश्व स्वास्थ संगठन कहता है तो यह बता की दुनिया में जो प्राचीन चिकित्सा पद्धति थी इसमें भारत की 17 वर्ष पुरानी आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति थी उसका देश दुनिया में कितना प्रचार प्रसार किया गया लोगों को प्राकृतिक जीवन जीना क्यों नहीं सिखाया गया प्राचीन औषधियों का उपयोग उस पर अनुसंधान व्रत उत्पादन की व्यवस्था क्यों नहीं की गई आखिर क्यों सारी विश्व स्वास्थ संगठन की कंपनियों की दवाइयों का ही उपयोग करने के लिए पूरी दुनिया को क्यों व्यवस्था जा रहा है। क्यों टीके लगाकर दुनिया की जनता को नपुंसक बनाया और बीमारियां बांटी जा रही हैं? तो फिर उसके पाखंड के ऊपर सच बोलने और लिखने से क्यों रोका जा रहा है भारत में और क्यों सर्वोच्च न्यायालय महामारी के विरुद्ध सच लिखने बोलने पर प्रतिबंध लगा रहा है? मात्र सत्ताधीशों को पूंजी पतियों के व्यवसाय संवर्धन से मिलने वाले मोटे कमीशन के कारण । 125 दिन से देश की 100 करोड जनता बेरोजगारी और भूख से परेशान हैं। देश के 35करोड बच्चों का 4 महीने से शिक्षा का कार्यक्रम रुका होकर भविष्य बर्बाद किया जा रहा है। उस पर आज तक धूर्त सत्ताधीशों व न्यायाधीशों ने कोई आवाज क्यों नहीं उठाई?
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