शिक्षा जन व समाज सेेेेवा को निजी स्कूलों ने बना दिया उसको व्यवसाय
शिक्षा व्यवसाय नहीं थी पर निजी स्कूलों ने उसको व्यवसाय बना दिया मोटी कमाई के लिए ड्रेस किताबें पेन पेंसिल कॉपियां टाई बैक डायरी सब स्कूलों की निश्चित की हुई दुकानों से खरीदने के लिए विवश करना बिल्डिंग फंड वसूल करेंगे पालकों से और बिल्डिंग बनेगी उन हरामखोर स्कूल संचालकों के नाम से। पुस्तकालय में किताबें हूं ना हूं प्रयोगशाला में सारे उपकरण रसायन वह अच्छे शिक्षक होना हूं फिश सरकारी स्कूलों से ज्यादा ली जाएगी फिर जितने भी निजी स्कूल कॉलेज यूनिवर्सिटी क्या शिक्षा के माध्यम से समाज रास की सेवा का काम करते हैं या मोटी वसूली के लिए लूटने और व्यवसाय करने का काम दूसरी तरफ खुद ने इंजीनियरिंग आर मेडिकल पूरे किए हो ना कि यहां पर सब के कॉलेज जरूर चल रहे हैं काहे के लिए लूटने के लिए। अच्छे शिक्षक नहीं अच्छे फैकल्टी नहीं। फीस बच्चों से पूरी ली जाएगी और बदले में कागज के टुकड़ों के रूप में प्रमाण पत्र अंक सूचियां और डिग्रियां बांटी जाएंगी। और बेचारे बच्चे लेने पर मजबूर हैं। 4 महीने के लाकडाउन में क्या प्राण निकल गए। अरबों रुपए की बिल्डिंग खड़ी कर ली वह कहां से खड़ी कर ली। बड़ी गाड़ीयां कहाँ से चल रही हैं। फिर निजी स्कूल और कॉलेज लडकियों और महिला शिक्षकों से अय्याशीयों के अड्डे चलाने नेताओं, गुंडे, बदमाशो, अधिकारियों जिन्होंने भ्रष्टाचार से इकट्ठा धन से, शिक्षकों, शिक्षा माफियाओं द्वारा ही चलाये व चलवाये जा रहे हैं। जो हरामखोर भडुवो ने खुद स्कूलों और कालेजों में ढंग से पढाई नहीं कर पाये बेअक्ली से नकल करके भी दो-3 साल में एक कक्षा में पास नहीं कर पाये। अब वो सारे जालसाज अनेकों स्कूलों और कालेजों, विश्वविद्यालयों के मालिक हैं। जो 90% जालसाजीयों से स्कूल कालेज चला रहे हैं। शिक्षा अब लूट, अय्याशीयों का व्यवसाय है। फीस सब अपनी मनमानी तरीकों से वसूली जाती है। चाहे 90% शिक्षकों के पास पर्याप्त ज्ञान हो न हो। सब जानते हैं। फिर भी पढ़ायेंगे तो निजी स्कूलों में तो इतना झेलना पड़ेगा। फिर भी संकटमोचन के प्रयास कर रहे हैं।
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