बहुराष्ट्रीय कं. का भारत के खेत, कृषि की उर्वरा भूमि और भारतीय फसलों पर कब्जा करने का षड़यंत्र

आखिर षड़यंत्र और पाखंड कितने लंबे समय से रचने की तैयारी की जा रही थी़। इसका अंदाजा 99.99% लोगों को अभी तक नहीं लग रहा। 1960 से बहुराष्ट्रीय कंपनियों की आंख का कांटा बने भारत के खेत, कृषि की उर्वरा भूमि और भारतीय फसलों पर जब भारत खाद्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने आत्मनिर्भर होने लगा। तभी 1966 में कीटनाशक अधिनियम 1968 में बीज अधिनियम बनवा कर बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा विश्व में अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए जो द्वितीय विश्व युद्ध के पहले संयुक्त शैतान संघ के अनुषांगिक कृषि संगठनों जिसमें विश्व खाद्य कार्यक्रम विश्व कृषि आदि के षड्यंत्रकारी संगठनों ने अपना जाल फैलाना और कानून बनवाना शुरू कर दिया था। बेशक भुखमरी भारत मैं 1972 तक रही परंतु इंदिरा गांधी ने हरित क्रांति का नारा देकर देश को भोजन के लिए अनाज दलहन तिलहन आदिशक्ति पैदावार को बढ़ाकर 80 तक आते आते ही अपने खाद्य आयतों को काफी हद तक समाप्त कर दिया। अधूरी छोड़ी है। क्योंकि अति ज्ञानी हाथ में पहुंचते ही तत्काल से मेरा नाम साफ करके अपने आप को बड़ा ज्ञानी बुद्धिजीवी बना अपना नाम लिखकर महान बनेंगे जैसा कि 99% पत्रकारों की जन्म कुंडली में स्थाई निवास कर रहा है। अधिकांश पाखंडीयों का जन्म तो इसी के लिए ही हुआ है।
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