दुन‍िया का स‍िध्दांतहीन एलोपैथिक मेडिकल सिस्टम डाक्टर ही भ्रम‍ित, आदतन औषध‍ि सेवन के श‍िकार

विश्व का सबसे प्राचीन मनुष्यों की चिकित्सा शास्त्र में भारत के आयुर्वेद का नाम सर्वप्रथम आता है मैंने कुछ अध्ययन किया है पारंगत मैं भी नहीं हूं का सिद्धांत है मनुष्य की प्रकृति के अनुसार उसके शरीर में पाई जाने वाली 8 धातुओं के कमजोर होते ही मनुष्य के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने से वे बीमार हो जाते है। इसलिए उसकी उम्र व प्रकृति के अनुसार धातुओं को, प्रकृति में विद्यमान वनस्पतियों तत्वों की उचित क्रिया व समय अनुसार आयुर्वेद में बताए सिद्धांतों के अनुसार तैयार कर औषधि के रूप में सेवन करवाने पर मनुष्य पूर्ण स्वस्थ हो जाता है। इसी प्रकार होम्योपैथिक में जो सिद्धांत है विषं विषये समंयति। अर्थात जहर को जहर काटता है। के अंतर्गत मनुष्य के शरीर में उत्पन्न विषाक्त तत्वों से रोगों की परिणीति को प्रकृति में उपलब्ध वनस्पतियों जीवो और पदार्थों को उपयोग कर उचित समतुल्य विषों के अति सूक्ष्म रूप में औषधि रूप में सेवन करवाने से मनुष्य के शरीर को स्वास्थ्य किया जा सकता है।जो लगभग 400 साल पहले डॉक्टर हैनेमन उनके सहयोगियों और बाद के जन्मे विशेषज्ञों ने उसको विकसित कर मनुष्य को निरोगी बनाने के लिए उपयोग किए जा रहे हैं। दुनिया की सबसे सस्ती सरल और सटीक औषधि प्रणाली है इसके विपरीत एलोपैथी कभी बोलती है एंटीबायोटिक्स दो फिर बाद में बोलते कि नहीं एंटीबायोटिक्स के बहुत साइड इफेक्ट है वह बंद कर दो फिर दवाई तैयार करती हैं बाद में मालूम पड़ता है क्या 5 साल बाद किसके बहुत खाते दुष्परिणाम आ रहे हैं तो उसको भी प्रतिबंधित कर दिया जाता है पिछले यदि हम 50 सालों का रिकॉर्ड ही देखें तो जिन औषधियों को पहले खाद्य एवं औषधि प्रशासन मैं घोर भ्रष्ट वहाँ के बिकाउ डाक्टरों की फौज स्वीकृत करता है। उसके दुष्परिणाम आने के बाद में उनको प्रतिबंधित कर देता है। ऐसी हजारों दवायें प्रतिबंधित होने के बावजूद भी भारत में आज भी दिख रही हैं दूसरी तरफ जिस एमबीबीएस की पढ़ाई में भारत में डिग्री बांटी जा रही हैं वहां के डॉक्टर्स के क्या हाल हैं उसके संबंध में एक छोटी सी रिपोर्ट एलोपैथिक मेडिकल सिस्टम पूरा ट्रायल एंड इरर अर्थात कोशिश करो गलतियां हो जाए बदल कर दवाई दो, जिसमें मोटी कमाई व कमीशनखोरी हो और ठीक करने की कोशिश करो प्रणाली पर चलता है। यह गणित की अभियांत्रिकी का हिस्सा नहीं वरन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भेषज विषेशज्ञों की बनाई हुई दवाओं मशीनों चिकित्सा उपकरणों की बिक्री और मोटी कमाई का हिस्सा है। और इसलिए यह पूरा व्यवसाय भ फैलाओ और कमाई करो यह बात अधिकांश युवाओं को पसंद नहीं आएगी। पर परिपक्व लोग जो बीमारियों का शिकार होकर डॉक्टरों की शरण में जिंदगी गुजार रहे हैं। बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। दूसरी ओर चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी जीवन से ही बीमारियों के बारे में पढ़ पढ़ कर मानसिक बीमार होने के साथ एलोपैथिक घातक रसायनों युक्त औषधियों के खाने के आदतन शिकार होते हैं। वे बिना किसी दूसरे डाक्टर को बताएं। जो दवाई उन्हें समझ आती व अच्छी लगती है। वह विद्यार्थी जीवन से ही खाना शुरु कर देते हैं। इसलिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती चली जाती है। और वे उस पर बिना किसी दूसरे डॉक्टर को बताएं क्योंकि दूसरे को अपनी बीमारी बताने से स्वंय की पेशे पर पकड़ कमजोर सिद्ध कर बदनामी का कारण बनेगी। अपने मन से ही नियंत्रण पाने के लिए ट्रायल एंड एरर का प्रयोग अपने पर ही करते रहते हैं। यदि आपकी पहुंच डॉक्टरों तक हो और उनकी निजी जिंदगी में झांकना संभव हो तो देखें डॉक्टर स्वयं ही ट्रायल एंड एरर कि स्वयं ही बड़ी प्रयोगशाला होते हैं। अब कल डॉक्टर पंजवानी का जो निधन हुआ वह पुरानी हृदय की बीमारी से ग्रसित था। स्वाभाविक सी बात है। आज जिस डॉक्टर का निधन हुआ उसकी मेडिकल हिस्ट्री कोई भी उसका साथी डॉक्टर नहीं बता सकता। जबकि वह स्वयं अपने ऊपर कितनी दवाओं का इसके बीमारी के भय को दूर करने के लिए प्रयोग कर रहा था। और उसके चक्कर में आज मृत्यु का शिकार हो गया। प्रशासन को वाह सरकारी स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टरों को चिल्लाने का पर्याप्त आधार बन गया। यह मीडिया के हुआ हुआ करने वाले पत्रकार इस पर अध्ययन करें और सच्चाई ज्ञात करें
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