अर्थव्यवस्था सुधारने के उपाय खंड 1-- निजीकरण रोको, एक करोड भर्तियां करो, जनता की क्रय शक्ती बढाओ-
अर्थव्यवस्था सुधारने के उपाय खंड 1 निजीकरण रोको, एक करोड भर्तियां करो, जनता की क्रय शक्ती बढाओ इस देश की अर्थव्यवस्था 60 साल तक विश्व की मंदी के विपरीत आगे बढ़ती रही उसके पीछे मूल कारण था। यहां नेहरु की लागू मिश्रित अर्थव्यवस्था का पाया जाना है़। इसके विपरीत दुनिया में सभी पूंजीवादी देशों में हर 5 साल में कम और हर 10 साल भारी मंदी के दौर में पूंजीवादी राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था में अनेकों कंपनियां बैंक बंद होती रही है। ‍जो की 1959-60, 1969-70, 1979-80, 89-90, 98-99, 2008-09 के वर्षौ के दौर से समझा जा सकता है। जबकि भारत अपनी मिश्रित अर्थव्यवस्था के कारण बचा रहा। इसे समझना होगा। इसलिए तत्काल निजी करण को रोकना हीं होगा। अन्यथा युद्ध और मंदी के दौर में सरकारें दीवाल‍िया हो जाती। परंतु भारत में बड़े उद्योगों सेवा क्षेत्रों जैसे रेलवे बीएसएनल सभी तेल कंपनियां आदि जो सरकारी क्षेत्र में थी सरकार उनसे अपने घाटे की भरपाई करके आगे बढ़ती रही है। इन क्षेत्रों में निजीकरण के कारण जानबूझकर निजी क्षेत्रों के पूंजीपतियों ने अपने फायदे के लिए सरकारी क्षेत्रों की कंपनियों का उपयोग कर भारी मोटी वसूली की और बदले में सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को डुबो दिया। इसलिए रेलवे में स्टेशन बेचना रेल निजी में बेचना आज नहीं तो कल सरकार के गले की हड्डी बन जाएगा। पूंजीपति वसूली करेगा बदले में घाटा दिखाएगा घाटा सरकार के माथे मार दिया जाएगा। मोटा लाभ को लेकर निकल जाएगा। दूसरी तरफ अपने फायदे के लिए वह सरकारी संसाधनों का भरपूर उपयोग करेगा बदले में भारी रखरखाव और घिसावट आदि का सरकार को भुगतना पड़ेगा। वर्तमान में जनता की क्रय शक्ति को बढ़ाने के लिए आवश्यक है जो मंदी का मूल कारण है तत्काल रेलवे, बीएसएनएल, पुलिस, शिक्षा, सैन्य बलों, जल, थल,वायु सेना में, स्वास्थ्य, बैंकों, बीमा, आयकर, श्रम, कस्टम, आदि केंद्र व राज्यों के सभी विभागों में लगभग एक करोड़ से ज्यादा लोगों की आवश्यकता है। पूरे देश में जिनकी भर्ती कर देने मात्र से एक तरफ लोगों को रोजगार मिलेगा और उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी। स्वाभाविक सी बात है हमारे देश में जहां साल भर के 12 महीनों में लगभग चार बड़े और 20 से ज्यादा छोटे त्यौहार आते हैं और हमेशा बाजार में ग्राहक खरीदारी करने के लिए तैयार रहता है जो अपने प्राप्त धन को स्वाभाविक सी बात है। धन आने पर वह इस बहाने खरीदी करने बाजार में आएगा। जो नोटबंदी के कारण उत्पन्न हुई थी। मंदी को अपने आप समाप्त कर देगा इसलिए आवश्यक है की तत्काल निजीकरण को रोककर भर्तियां कर पेशेवर प्रबंधक नियुक्त कर श्रेष्ठता से सभी शासकीय उपक्रमों को स्वयं सरकार चलाएं। जो सरकार की भर्तियों के बाद पर्याप्त आयकर माल एवं सेवा कर व अन्य माध्यमों से कमाई का साधन भी बनेगा। सरकार की आय में बढ़ोतरी होने से वह नई परियोजनाओं सड़कों और रेलवे, बांधों आदि में नया निवेश करने में सक्षम होगी। बीएसएनएल, एयर इंडिया, बैंकों, बीमा कंपनियों तेल कंपनियों का जो प्रतिस्पर्धा के लिए निजी क्षेत्र का बाजार खड़ा किया गया था वह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करने की अपेक्षा सरकारी संसाधनों का भरपूर उपयोग कर मोटा लाभ कमाता है। और उस धन को दूसरी जगह निवेषित कर घाटा दिखाकर सरकारी सेवाओं का शुल्क चुकाने से मुकर जाता है। उसकी पूर्ण शत-प्रतिशत वसूली करने पर इन सभी उपक्रमों को घाटे से उबरा जा सकता है। मोदी पूंजी पतियों का रखेला इन सब चुनाव के लिए गए मोटे धन के कारण अंध सहयोग करता है और यही सबसे बड़ी हानि का कारण बना हुआ है सरकारी बैंकों में इन सब पूंजीपतियों ने लाखों करोड़ का ऋण लेकर बैंकों का धन जमा नहीं किया। बैंक इसलिए घाटे में आए। बैंकों के घाटे में पहुंचाने का कांग्रेश और भाजपा के धूर्त राजनीतिज्ञों पूंजीपतियों से लाखों करोड़ का अपना चंदा वसूलने और बैंकों से ऋण दिलवाकर डुबोने का खेल सभी ने किया। जबकि बैंक रु दो -5लाख के ऋण से लेकर अरबों रुपए के 75% के ऋण के पीछे 100%संपत्तियों को गिरवी रखने का काम ऋणों का सुरक्षित करने के लिये करता है। तो फिर बैंकों में गैर उत्पादक और लाखों करोड़ के ऋण डूबंत क्यों और कैसे हुये। उन बैंकों के प्रबंधकों, ऋणप्रदाता प्रबंधकों, जिन्होंने ऐसे ऋण बांटे। और डूबंत हुये। कितने हजार ऐसे प्रबंधन के लोगों को सी बी आई से जांच करवा कर जेलों में सढ़ाया गया और उनसे वसूली के लिए दबाव डाला गया। उल्टे ही रिजर्व बैंक को खाली कर ऐसे पूंजी पतियों का कर्ज स्वयं मोदी ने माफ कर बैंकों की थोड़ी बहुत भरपाई कर दी। यदि मोदी के आंखों के सामने से पूंजीपतियों के चरणों में लौट लगाने व सरकारी संपत्तियों रेलवे बैंकों बीमा कंपनियों तेल कंपनियों व अन्य उद्योगों को बर्बाद करवाकर उनका घर भरने का भूत उतर जाए । सभी सरकारी उपक्रमों को मजबूत करने और उनमें भर्तियां करने की, 370 और नागरिकता बिल की तरह जुनून आ जाए तो देश में मंदी कहां है? बेरोजगारी कहां है? ढूंढने से भी नहीं मिलेगी और अर्थव्यवस्था अपने आप जागृत होकर पटरी पर दौड़ने लगेगी। प्रस्तुतकर्ता प्रवीण अजमेरा समय माया समाचार पत्र इंदौर www.samaymaya.com
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