भारत के मानवीय जंगली नेशनल यु‍न जानवरों के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में वर्तमान में जिन सुविधाओं पर यहां जिस कौम की नस्ल को पढ़ाया और बढ़ाया जा रहा है।
भारत के मानवीय जंगली नेशनल यु‍िन जानवरों के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में वर्तमान में जिन सुविधाओं पर यहां जिस कौम की नस्ल को पढ़ाया और बढ़ाया जा रहा है। उतनी से कम सुविधाओं पर तो हमें 40 साल पहले भी उसकी 10% सुविधाएं भी मिल जाती तो हमने देश का नक्शा बदल दिया होता साडे 16 साल की उम्र में ही एक हाफ पैंट और एक शर्ट के दम पर छिंदवाड़ा के धर्म टेकरी कॉलेज मैं बीकॉम द्वितीय वर्ष का छात्र था कॉमर्स मैंने प्रथम वर्ष में पढ़ा था और द्वितीय वर्ष में मैंने अपने प्राध्यापक चिंतामणि शुक्ल से अपने घर से 7 किलोमीटर दूर पैदल चलते हुए मुलाकात होने पर उनको अपनी थीसिस देखने की जो फैशन इज द की ऑफ इकोनॉमिक्स लिखने के लिए कहा तो उन्होंने मुझे लेक्चर पेलते हुए कहा पहले बीकॉम फाइनल करो फिर एम कॉम एम फिल करना उसके बाद में पीएचडी करने का मौका मिलेगा मैंने सोचा कल सुबह की रोटी की व्यवस्था नहीं है। द्वितीय वर्ष और फाइनल होने की गारंटी नहीं है। तो अपन थीसिस नहीं लिख पाएंगे। रोटी के चक्कर में सचमुच नहीं लिख पाए यदि 1978 में मुझे मौका मिलता और मैं उस पर थीसिस लिख देता तो उस देश को सोने की चिड़िया बनाने की क्षमता तो मुझ में थी पर मैं जैनी कुल में पैदा हुआ था ना तो फीस थी ना किताबें थी ना पहनने के कपड़े सनम दो वक्त का भोजन और मैं नहीं लिख पाया और लिख देता तो जो हाल आज जापान चीन कोरिया ने पूरी दुनिया में किया है मैं उस समय ही करके बता देता जैसे मेरे देश की बीड़ी और साड़ी को यदि पूरे विश्व में प्रोत्साहित कर चलाया जाता तो मेरे देश की वीडियो साड़ी दुनिया की सारी सिगरेट इंडस्ट्री को और साड़ी पूरी दुनिया के महिलाओं की वस्त्रों की स्थिति को बदल कर मेरे देश की सारी पूरी दुनिया की औरतें पहन नहीं होती और मेरे देश की अर्थव्यवस्था बदल गई होती इसके विपरीत मेरी खोजी प्रवृत्ति नहीं अनेकों खोजें कि। देश को दी देश के काम आए बेशक मेरा नाम कहीं नहीं हुआ। मुझे बैंक ऑफ इंडिया में 22 अक्टूबर 1983 को नौकरी मिली और मार्च 85 तक मैंने बैंक की कमियों खामियों और बैंक के व्यवसाय को बढ़ाने पर लगभग 40 नई खोजें करके बैंक को सौंपी थी जिस पर इस पर एक थी जिसमें मैंने ब्याज के 1% से लेकर 30% तक के 1 दिन के ₹1 की जो कोईफिशिंएंट तैयार किए थे। सन 2010 में बैंक ऑफ इंडिया की इंदौर ब्रांच में जाने पर वहां के एक अधिकारी ने बताया कि उनको शिशन पर आज दुनिया की सारी बैंकिंग इंडस्ट्री चल रही है और बहुत सारे पेपर जो मनीष जमा किए थे उस पर बहुत सारी बैंकों ने उसको नीतिगत व्यवसाय प्रक्रिया में डालकर अपने व्यवसाय को कई गुना बढ़ाया पर मैं वही अपनी चप्पलें चटका रहा हूं फुटपाथों पर। मेरे नाम की मेरी थीसिस जो अलग-अलग 40 विषयों पर थी को मेरी बैंक ऑफ इंडिया में भी मुंबई स्थित मुख्यालय में भेजने पर वहां पर बैठे अधिकारियों ने मेरा नाम फाड़ कर अपना नाम लिखकर पुरस्कार ले लिए और मेरे तन्मयता और पूर्ण निष्ठा से काम करने के चक्कर में मुझे गंभीर स्पोंडिलाइटिस हो गया मजबूरन मुझे सन 94 में वह नौकरी छोड़नी पड़ी। पर मेरी खोजी प्रवृत्ति थमी नहीं अभी हाल ही में इंदौर में फैली बदबू के ऊपर भी मैंने शोध किया और बताया। कि इस बदबू के पीछे कचरे की सलाम जो कचरा दृष्टि करंट प्रक्रिया कचरा ट्रांसफर स्टेशन जो मनमानी तरीके से पूरे शहर में 400 से ज्यादा नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारियों ने बिना किसी ठोस नीति नियमन और प्रक्रिया के बिना प्रदूषण मंडल की स्वीकृति बिना नगर एवं ग्राम निवेश के स्वीकृति के बनाए हैं पर 10 से 20% कचरे का ही प्रसंस्करण होता है बाकी 80% कचरा यहाँ वहाँ नष्ट करके और फैला कर खत्म कर दिया जाता है। उसकी सडांध की बदबू है। यह बात मैंने सारे मीडिया वालों को अपने व्हाट्सएप से भेजी। जिसे सबसे पहले 15 नवंबर को पत्रिका ने छापा उसके बाद लगातार 16 17 18 19 और 20 तारीख को भास्कर पत्रिका के साथ आनी समाचार पत्रों में भी आना शुरू हुआ शब्द इन भ्रष्ट निकम्मा ने कचरा निपटान केंद्रों के कार्यों को ठंडा करने के कारण आज बदबू नहीं आ रही है। कहने का तात्पर्य है। कि जेएनयू जैसे सुविधाजनक केंद्रों पर हम जैसे गरीबों को मौका मिलता जो आज कहीं ज्यादा हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस देश का नाम कर रहे होते। उन हरामखोरों को जो सुविधाएं सन 80 के दशक में हमको नहीं मिली वह इन्हें मिल रहे हैं। और बदले में हमारे देश को चरस गांजा अफीम एलएसडी सावन करके अय्याशी पूर्ण तरीके से इस देश को गालियां बक रहे हैं। मेरे उदाहरण देने का उद्देश्य अपने आपको मान सिद्ध करना नहीं वरन मुद्दे से करोड़ों गरीब प्रतिभाशाली छात्रों को सुविधाएं प्रदान कर इस देश की वर्तमान और भावी पीढ़ियों को समृद्ध सक्षम बनाना है। तत्काल इन जानवरों की राष्ट्रीय प्रयोगशाला के विश्वविद्यालय को बंद किया जाए जहां पर जनता से भारी करो के रूप में नोचा गया धन वहां रिसर्च नहीं नशे और यौनाचार का खुला अय्याशी का अड्डा बन और राष्ट्र द्रोही छात्रों और भावी आतंकियों की पनाहगाह बन चुका है। जिसे तत्काल बंद किया जाना चाहिए। और मेरी खोजों को समझने के लिए मेरी साइट www.samaymaya.com जिसकी हर लेख में मैंने कोई ना कोई नई खोज नई सोच और नई दिशा देश की भावी पीढ़ियों के लिए देने का प्रयास किया है उस पर बारीकी से अगर काम किया जाए तो बहुत सारी समस्याओं का हल में लगातार लिखता रहा हूं। सरकार उनको उपयोग कर बहुत सारी समस्याओं का निदान ले सकती है जो जनता देश और दुनिया के काम आएगा।
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