औद्योगिकरण के लिए करेें बंजर भूमि का उपयोग, बंद करो बर्बादी कृषि व वन भूमि की
पृथ्वी पर भूमि को घटाया बढ़ाया नहीं जा सकता। कृषि व वनो की उपजाऊ भूमि तैयार होने में लाखों साल लग जाते हैं। जो उपजाऊ कृृष‍ि‍ व वन भूमि भारत के मध्य प्रदेश मालवा में काली मिट्टी की जमीन वर्तमान में उपलब्ध है, जो पृथ्वी पर हर प्रकार की कृषि उपज के लिए श्रेष्ठतम भूमि है। जैसा कि कृषि वैज्ञानिकों का कहना है।वह कृषि भूमि औद्योगिकरण, शहरीकरण के नाम पर हमारेे घोर लालची, धूर्त, मक्कार, जालसाज, पूंजीपति, मीडिया माफिया, प्रताड़ना सेवा अधिकारी, अपराध संरक्षण अधिकारी, जिलाधीश कार्यालय में बैठे, जिलाधीश, उप, सहायक जिलाधीश, तहसीलदार, पटवारी, गुंडे बदमाश नेता, मंत्री, भू माफिया, कॉलोनी माफिया सभी ज्ञानी, ध्यानी, सत्ता, छल, बल, दल के अहंकार में चूर, सभी यह जान कर भी कि पहले जीवन के लिए पेट में भोजन की आवश्यकता है। जो कृषि भूमि पर उत्पन्न की गई , फसलों से ही से ही प्राप्त होता रहा है और होगा। आखिर उद्योग लगाने के नाम पर किए जा रहे बेशकीमती काली मिट्टी की खेती की जमीनों की बर्बादी जो मालवा के इंदौर उज्जैन संभाग के 15 जिलों मैं सबसे ज्यादा उद्योगीकरण निमाड़ पीथमपुर धार में किया जा रहा है। जहां पर काली मिट्टी की कृषि भूमि पाई जाती है। उसको यह सारे हरामखोर गिद्धों की फौज क्यों बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। जहां सुखी बंजर जमीन पड़ी हुई है, मालवा के हर जिले में जिसमें आगर में झाबुआ में और अन्य स्थानों पर आखिर उन जमीनों का उपयोग क्यों नहीं किया जाता। उद्योग लगाने के लिए ताकि वहां के लोगों को रोजगार भी मिले उन जमीनों का उपयोग भी हो जाए धूर्त मक्कारों को इस से कोई मतलब नहीं। औद्योगीकरण के चक्कर में इंदौर संभाग की पिछले ४0 सालों में लगभग 1 लाख हेक्टेयर से ज्यादा काली मिट्टी की खेती की जमीन औद्योगिकरण और शहरीकरण के नाम पर बर्बाद कर दी गई। आखिर क्यों यह बहुत महान लालची, स्वार्थी, मक्कार जाल साज पूंजीपति नेता, अधिकारी जो बड़े ज्ञानी धर्मी समझे जाते हैं। इनकी अक्ल व सोच के दिवालियापन का सीधा सामने उदाहरण है। जो कृषि भूमि मालवा में उपलब्ध है, उसका सदुपयोग केवल कृषि कार्यों के लिए होना चाहिए बढ़ती हुई आबादी के लिए पहले भोजन चाहिए। निसंदेह औद्योगीकरण और शहरीकरण भी आवश्यक है जिसके लिए हर जिले में हजारों हेक्टेयर बंजर भूमि पड़ी हुई है इसका सदुपयोग शहरीकरण और औद्योगीकरण के लिए की जाना चाहिए। चाहे शूकरों हरामखोर कांग्रेसी हो या भाजपाई किसी को जनता के भविष्य से और खेती की जमीनों से मतलब नहीं। सबको अपनी कमाई चाहिए। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को इस बारे में तत्काल गंभीर निर्देश मालवा संभाग के 15 जिलों केे जिलाधीशोंं से लेकर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री भारत सरकार को दिया जाना चाहिए ताकि वे उपजाऊ कृषि व वन भूमि का दुरुपयोग औद्योगिकरण शहरीकरण के नाम पर करके उसे कंक्रीट जंगल में ना बदलें। ताकि आने वाली पीढ़ियों को जीवन जीने के लिए पर्याप्त हरियाली वन भूमि से और जीवन के लिए पर्याप्त भोजन के लिए कृषि भूमि उपलब्ध रहे।
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