बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ठेका खेती और उद्योग धंधों पर कब्जे का षड्यंत्र
सभी पार्टियों के बड़े गिद्ध नेता तुले हैं देश को बेचने और गिरवी करने बहुराष्ट्रीय कंपनियां देश के मंत्रियों और मंत्रालयों के अधिकारियों को खरीद का पहले कानून बनवाती है। फिर देश के प्राकृतिक एवं मानव निर्मित स्त्रोतों पर कब्जा कर देश की जनता को गुलाम बनाकर उनका शोषण करती है। अंग्रेजों का गुलाम बनाने का षड्यंत्र का दुष्चक्र बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से चल रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का षड्यंत्र देश की काली मिट्टी की जमीनों को हथियाने के लिए 1970 से हमारे देश में शुरू हो गया था। इसके लिए 1966 से ही भारत में बीज अधिनियम और 1968 में कीटनाशक अधिनियम बनवा ल‍िया गया था। इसके बाद भारतीय उद्योगों का एकाधिकार समाप्त करने एकाधिकार एवं प्रतिबंधित व्यापार अधिनियम 1970 से लेकर भारतीय खाद एवं मानक अधिनियम 2006, 2016 में नोटबंदी, 2017 में जीएसटी तक सब बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ उनसे लाखों करोड़ का मोटा धन खाकर ही हमारे मंत्रियों और भारतीय प्रताड़ना सेवा के अधिकारियों ने इस देश पर सारे कानून लादे। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ठेका खेती और उद्योग धंधों पर कब्जे से 100 करोड लोगों को बेरोजगार बनाने का षड्यंत्र चल सरकार को खरीद कर बेखौफ चल रहा हृै़। यूरोपीय जालसाज महाधूर्त बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने विश्व बैंक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के माध्यम से दुनिया के हर देशों की हर सरकार को, विकास के नाम पर कर्ज बांट कर ताकि सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों को भ्रष्ट बनाकर खरीदा, फिर वहां के मानव निर्मित प्राकृतिक स्रोतों पर कब्जा करने के लिए कानून बनवाए। इसके अंतर्गत भारत में विश्व की सर्वश्रेष्ठ खेती की जमीनों को कब्जाने के लिए प्रयास किए। इसके लिये सबसे पहला प्रयास था। मनरेगा के अंतर्गत 100 दिन की मजदूरी और ₹1 किलो में गेहूं ₹2 किलो में चावल देकर भूमिहीन मजदूरों को निकम्मा और आलसी बनाकर छोटे खेत के किसानों की जमीनों पर काम न करने देने के लिए उन से अलग करने का षडयंत्र रचा गया। इस षडयंत्र की बुनियाद में कांग्रेस और भाजपा के भूखे भेड़ियों ने आंख मीच कर इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ देसी चोला ओढ़े इंडियन टोबैको कंपनी, जिसका हरियाली के नाम से हर जिले के बाहर बड़ा किसानों की उपज खरीदने के लिए और जमीन पर कब्जा करने के लिए हरियाली के नाम से बढ़ा क्रय विक्रय केंद्र काम कर रहा है। पिछले 20 सालों से, यह खेल भी अटल की सरकार (1999-2003) रहते हुए प्रमोद महाजन और अरुण शौरी नेे हीं पूंजीपतियों से मोटा धन लेकर उनके इशारे पर नाचते हुए शुरू किया था। उसी के समय पर सरकारी कंपनियों जो केंद्र व राज्यों में थी, को भी पूंजीपतियों को उनसे भारी कमीशन खाकर विन‍ि‍वेशीकरण के नाम पर निजीकरण की शुरुआत कर दी गई थी। उदारीकरण के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियां, जिसमें मोनसेंटो, हिंदुस्तान लीवर, कैलाग, कारगिल , मैकडोनाल्ड, पार्ले, वॉलमार्ट के साथ देसी टाटा, बिरला, अंबानी, अदानी जिनके बड़े शॉपिंगमॉल सन 2000 में बनने लग गए थे। इन सब ने एक अरब करोड़ से ज्यादा धन चंदे में तत्कालीन भाजपा अटल की और बाद में कांग्रेस की सरकार को देकर खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 बनवा लिया था। जिसके अंतर्गत किसानों की जमीन हड़पने के लिए सबसे पहले मंडियों को खत्म करना। फिर छोटे-मोटे उद्योगों, खाद्य प्रसंस्करण ईकाइयोंं, इसमें नमकीन, म‍ि‍ठाई, से लेकर ठेले पर चाय कचोरी पकौड़ी बेचने वालों तक, खाद्य पदार्थों की पैकिंग करने वालों, व्यापारियों, हाकरों, ठेले वालों, सब्जी वालों इसमें लगभग 2 करोड लोगों को रोजगार मिला हुआ है, को विभिन्न कानूनों के जाल में फंसा कर उस पर कभी प्लास्टिक के नाम पर कभी हाइजीनिक के नाम पर कभी गंदी बाड़ा नाली के नाम पानी से सब्जी धोने के नाम पर मोटी पेनाल्टी ठोक कर जो 25हजार से शुरू होकर 5लाख तक जाती है। जिसकी लूट और दंडात्मक कार्रवाई के सारे अधिकार कलेक्टर डिप्टी कलेक्टर, सहायक कलेक्टर के पास में होते हैं। और वही करोड़ों रुपए इस कानून की चमका धमका कर, खाद्य सुरक्षा अधिकारियों के साथ पिछले 8 सालों से मिलकर कमा रहे हैं। वर्तमान में स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट जो खुद सब्जी बेचने वाला हर महीने खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम के नाम पर मध्य प्रदेश के 51 जिलों के कलेक्टर और जिसमें इंदौर केे खाद्य सुरक्षा अधिकारी मनीष स्वामी से लाखों को महीने की रिश्वत ले रहा है।
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