"पृथ्वी का वृक्षारोपण से करो श्रृंगार, सभी जीवो को दो भोजन, पानी, स्वच्छ पर्यावरण का उपहार"। ।
"पृथ्वी का वृक्षारोपण से करो श्रृंगार, सभी जीवो को दो भोजन, पानी, स्वच्छ पर्यावरण का उपहार"। कृृष‍ि भूमि की मेड़ों पर करवाएं सघन वृक्षारोपण़़। केंद्र व राज्य सरकारेें कृषि, उद्यान‍ि‍की व ग्रामीण विकास विभागों को निर्देश देकर । बुंदेलखंड का जाखनी गांव खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़ लगाकर, वर्ष भर लेता है 3-4 फसलें, मेड़ पर बनाई कुुुुओं में 5 फुट पर पानी वर्ष भर रहता है। वर्षो से यह बात मैंने एक शहर से दूसरे शहर जाते समय महसूस की, अप्रैल, मई, जून के महीनों में, कृषि भूमि पर फसल कटाई के बाद, हजारों हेक्टेयर जमीन सूूखी और खाली दिखती है। क्योंकि वहां पर हजारों हेक्टेयर पर वृक्ष नहीं दिखते हैं। वहांं अनेकों वर्षों से वृक्षारोपण नहीं हुआ। इस संबंध में पिछले कई सालों से, वन, ग्रामीण पंचायत से, कृषि विभाग से, उद्यानिकी विभाग से निवेदन कर रहा हूं। कि वे किसानों के खेतों की मेड़ों पर जहां उसकी खेतों की सीमाएं खत्म होती हैं। उनकी मेड़ों की जमीन की सीमा पर 5-10' की दूरी पर चारों तरफ कम से कम वहां पर 10-20 फलदार व अन्य प्रजातियों के वृक्ष लगवाए जाने चाहिए। ताकि वहां पर खेतों की जमीन सुरक्षित रहेगी कटाव नहीं होगा। ज्यादा पानी भरने की समस्या नहीं होगी। जल स्त्रोतों पर वर्ष भर पानी संचित रहेंगा। जिससे 3-4 फसलें ली जा सकती हैं। खेतों पर अनावृष्टि, तीखी धूप से फसलें शीघ्र सूखने की अपेक्षा उसमें मजबूत और भारी फल लगेंगे। छाया होने के साथ ही साथ तेज तूफान, हवाओं, वर्षा का फसलों पर नकरात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। साथ ही यदि फलदार वृक्ष है। तो उनमें आई हुई फसलें आम, इमली, जामुन, अनानास, पलाश, तेंदु, खिरनी, अंजीर, कटहल, हर्ड, बहेड़ा आंवला चीकू, सुरजना, अन्य वृक्षों की औषधियों जड़ी बूटियों आदि के उपयोग से भी किसानों को कमाई का एक नया साधन भी हमेशा बना रहेगा। ताकि फसलें बिगड़ जाने पर भी किसान अचानक धनाभाव का शिकार नहीं होगा। वृक्षों के बड़े होने तक वह पत्तों, गोंद, फल आदि का बहुविधि उपयोग कर कमाई करने के साथ वृक्षों के बूढ़े होने पर उनकी कटाई से लकड़ी से भी कमाई होगी। दूसरी तरफ मेडों पर वृक्षों के लगने से पर्यावरण, मैं पर्याप्त ऑक्सीजन बनी रहेगी और अधिकतम वृक्षों के लगने से कार्बन डाइऑक्साइड का शोषण होता रहेगा। ऊपर दी हुई समाचार पत्र की कटिंग मेरे सत्य की पुष्टि करती है। तो कृषि, वन विभाग और उद्यानकी से मेरा निवेदन है कि वह अपने कृषि विस्तार एवं उद्यानकी विस्तार अधिकारियों से चर्चा कर ग्रामीणों को अपनी कृषि भूमि की मेड़ों पर उद्यानिकी विभाग द्वारा और वन विभाग द्वारा फलदार व अन्य प्रजातियों के वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाए। सघन वृक्षों के होने से सैकड़ों प्रकार की चिड़ियों को पुनः जीवनदान मिल सकेगा जो बिगडते पर्यावरण से तेजी से खत्म होती जा रही हैं। छोटी चिड़िया फसलों के बीजों में परागण और निषेचन करने में, कीट पतंगों को जो उनका भोजन है खाकर भी फसलों की रक्षा में भी अत्यधिक उपयोगी हैं। बड़ी चिड़िया, चील, उल्लू, गिद्ध, जो फसलों की चूहों व अन्य घातक जीवो से रक्षा करते हैं। से भी सहायता मिलेगी। ताकि भूमि अप्रैल, मई,-जून तक फसलों के अभाव में सूनी-सपाट और खाली, वृक्षहीनता से सौंदर्यहीन न दिखे। "पृथ्वी का वृक्षारोपण से करो श्रृंगार, सभी जीवो को दो भोजन, पानी, स्वच्छ पर्यावरण का उपहार"।
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