खंड1- मंदी से और मंदी में जीविका चलाने के उपाय

यदि राष्ट्रभक्ति और देशभक्ति का थोड़ा सा भी आपके हृदय में जज्बा है। तो चीनी माल को आयात और खरीद-फरोख्त करना बिल्कुल त्याग दें दिल दिमाग से आपके देश की बेरोजगारी का का बहुत बड़ा मूल कारण भी है। बहुत छोटा सा सिद्धांत है। आप रोजगार देंगे तो आप को भी रोजगार मिलेगा। आम जनता के लिए मंदी के विकल्प में सबसे महत्वपूर्ण हैं। पहला चीनी माल के खरीद-फरोख्त और आयात पूरा बंद कर दिया जाना चाहिए। उसका अगर 80 लाख करोड़ में से 40 लाख करोड़ का माल भी भारतीयों ने हाथ लगाना बंद कर दिया। तो आसानी से 80 लाख लोगों को उद्योगों में रोजगार मिल जाएगा। उसे दो से 5 करोड़ लोगों को खरीद बिक्री, पेकिंग, परिवहन आदि से रोजगार मिलेगा। जब देश का माल देश में बिकेगा स्वाभाविक सी बात है मंदी का असर खत्म तो नहीं पर 60% तक कम हो जाएगा। देश का देश में रहेगा पैसा तो चलन में चलेगा। जितना चलन में बढ़ेगा उतनों के हाथों से गुजर कर उनको रोजगार देगा। दूसरा बड़े-बड़े देशी विदेशी शॉपिंग मॉल और ऑनलाइन खरीदी बिल्कुल बंद कर देनी चाहिए। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलना आसान हो जाएगा। उन्हें रोजगार मिलेगा। फुटपाथ, ठेले, रेहटी, गुमटी, स्थानीय छोटे किराने वाले, कपड़े वाले कटलरी फल फ्रूट वालों से सामान खरीदने से दो पैसे का उनको लाभ मिलेंगा। जिनसे आप भाव ताव करके ना केवल माल को उचित कीमत पर देखभाल करके खरीद सकते हैं। वरन उनसे संबंध बन जाने पर वही आपको उधारी माल भी देते हैं। उन की रोजी-रोटी चलेगी। तो अराजकता और बेरोजगारी नहीं फैलेगी। आवश्यकताओं को कम कीजिए। महंगी ब्रांडेड सामानों वस्त्रों पैकेज्ड फूड, पेय पदार्थों आदि को खरीदना, हाथ लगाना बंद कर दीजिये। जो आपसे लूट के साथ बीमारियों को दे कर आपको पारिवारिक आर्थिक मानसिक और सामाजिक हानि भी पहुंचा रहे हैं। बड़े महंगे सामान खरीदना बिल्कुल बंद कर दीजिए। मंदी को दूर होने में मोदी के रहने तक संभावना नहीं। क्योंकि यह धूर्त पूंजीपतियों की कठपुतली, उनके इशारे पर नाच कर उनके लाभ के लिए लघु, छोटे, मध्यम उद्योगों, व्यवसायों धंधो को ऋण और परेशानियों के जाल में उलझा कर नष्ट-भ्रष्ट करने में लगा है। थोड़ी बहुत मंदी कभी ज्यादा बुरी नहीं होती और उससे आपको सोचने समझने के साथ, नये अवसर तलाशने, माल की गुणवत्ता सुधारने, लागत और कीमत कम करने, किफायत से रहने का अवसर देती है। यह वक्त ब्रांडेड सामानों के विकल्प ढूंढ कर उन्हें घरेलू और लघु उद्योगों में तैयार कर बिक्री करें। जिससे बाजार की पकड़ बनाने से भी सहयोग मिलेगा। जैसे महिलाओं की दो चिंदे की चोली, चड्डी कीमत ₹100 ₹200 जबकि छोटे लघु उद्योग में उसकी कीमत 4 से ₹5 और सिलाई मिलाकर भी ₹8 तक पड़ेगी आसानी से पंद्रह ₹20 में बेच कर बाजार पर पकड़ बनाने का खेल संभावित है। वही हाल हमारी बनियान जांघिया आदि का भी है। कोई भी माल ₹70-80/- से कम नहीं है। हमारी पारंपरिक लंगोटी को ब्रांडेड बनाकर विश्व में बेचा जाए। जो न केवल यौन रोगों, अंडकोष के रोगों जिसमें हाइड्रोसिल हर्निया व पेट के रोगों को रोकने में सक्षम थी इन ब्रांडेड वालों ने खत्म कर दिया। पुनः विकसित जाये। ऐसे ही आमजन के उपयोग में आने वाली सैकड़ों वस्तुएं जिन पर चीनी और विदेशी ब्रांडेड दोनों ने कब्जा कर लिया है। के विकल्प देश में ढूंढ कर नए रोजगार धंधे पैदा कीजिए। मंदी का अंधेरा है, कोई गम नहीं। अपनी और दूसरों के मस्तिष्क को नई सोच, नई पहल, नई तरकीबें और प्रयासों से प्रकाशित रखिए।
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